वीरों की धरती भारत में शहीदों की बहादुरी के क़िस्से हमारे दिलों में गहराई से रचे बसे हैं। शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की शहादत की कहानी भी रोमांच से रोंगटे खड़े कर देती है। पर ये कहानी सिर्फ़ देश पर मर मिटने वाले एक सैनिक की कहानी भर होने से कहीं आगे है, इसमें पत्नी का प्यार, माँ का दुलार के साथ देश के लिए अपने बेटा खो देने वाले बुजुर्ग माँ बाप की व्यथा भी शामिल है। यह वो कहानी है जिसकी गूंज से भारतीय सेना शहीदों से संबंधित ‘नेक्स्ट ऑफ किन’ (‘नोक’) पालिसी पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर है।
जुलाई 2023 की अलसुबह 3 बजे, विश्व के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में सेना के एक गोला-बारूद डंप में अचानक लगी आग की लपटों ने ग्लेशियर की बर्फीली चुप्पी को झकझोड दिया। वही तैन्नात फ़ौज के मेडिकल अफ़सर कैप्टन अंशुमान सिंह, ने बिना कोई समय गवाए, डम्प में फँसे जवानों को बचाने में जुट गये। भीषण आग, गोला बारूद के धमाकों के बीच, दम घोंटू धुएं को चीरते हुए, उन्होंने कई सैनिकों को बचाया। किंतु अपने अंतिम प्रयास में, वह एक जलते हुए फाइबर-ग्लास पैनलों से बने डंप शेड में फंस कर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर अदम्य साहस और निःस्वार्थता का प्रतीक बन गए। कैप्टन अंशुमान सिंह को उनके बलिदान के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन सिंह की अभिभूत करने वाली कहानी का एक मार्मिक पहलू उनकी पत्नी स्मृति सिंह से जुड़ा है। कैप्टेन और स्मृति कॉलेज के पहले दिन मिले और पहली ही नजर में दोनों जीवन भर के लिए एक दूसरे के हो गये। आठ साल के लंबे रिश्ते के बाद 2023 के शुरुआत में कैप्टन सिंह की शहादत से महज़ पांच महीने पहले दोनों की शादी हुई थी।
सियाचिन में अपने दिवंगत पति की अद्वितीय बहादुरी के आगे उनकी पत्नी की क्षति मानो क्षीण हो गई। कैप्टेन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाज़ा गया जो उनकी पत्नी ने प्राप्त किया। उस समारोह में स्मृति के दुखी चेहरे और आंसुओं से भरी आँखों का वीडियो जमकर वायरल हुआ, जिसने जनता को झकझोर कर रख दिया। वायरल वीडियो के साथ ही कैप्टन सिंह के बुजुर्ग माता पिता का दुख भी जानता के सामने आ गया जब पता लगा कि कैप्टन सिंह को जन्म और संस्कार देने वाले वीर माता और पिता अपने बेटे की शहादत के समारोह में ही अजनबी हो गये। कैप्टेन सिंह को मरणोपरांत दिये जाने वाले कीर्ति चक्र को प्राप्त करने वाली उनकी पत्नी स्मृति सिंह अब कैप्टन सिंह के माता-पिता से अलग रहती हैं। कार्यालय रिकॉर्ड में उन्होंने अपना पता भी बदल लिया है और फ़ौजी आदेश के मुताबिक़ अपने पति की मृत्यु के बाद अधिकांश अधिकार उनकी पत्नी को प्राप्त हो गए है, जबकि कैप्टन सिंह के माता-पिता के हिस्से में अब केवल उनके शहीद बेटे की दीवार पर टंगी फोटो रह गई है।
कैप्टन अंशुमान सिंह के दुखी माता-पिता, रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह ने वर्तमान ‘नोक’ मानदंडों के प्रति अपनी गहरी असंतुष्टि व्यक्त की है। रवि प्रताप सिंह ने ‘नोक’ पालिसी पर प्रश्न उठाते हुए उक्त नीति में विवाह की अवधि और पारिवारिक निर्भरता जैसे कारणों को शामिल करने पर ज़ोर दिया है। साथ ही उनका मानना है कि जिन माता पिता ने बेटे को पाल-पोस कर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के संस्कार दिए उन्हें उनके बेटे की पत्नी के अधिकारों के आगे भुला दिया गया। उनके बेटे की शादी महज़ 5 माह पूर्व हुई थी और उनकी कोई संतान भी नहीं थी ऐसे में उनके बेटे की शहादत की विरासत को महज़ पत्नी तक सीमित कर उन्हें भुला देना कहाँ तक उचित है। उनका मानना है कि फ़ौज की नीति में सुधार कर शहीद के माता-पिता को भी समान रूप से परिलाभ प्राप्त करने का विकल्प दिया जाना चाहिए ताकि उनके समान अन्य माता-पिता को कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। शहादत की विरासत को केवल पत्नी तक सीमित कर माता पिता को नज़रंदाज़ किया जाना कैसे उचित हो सकता है।
कैप्टन सिंह के माता-पिता द्वारा उठाये गये प्रश्नों से उनके बेटे की शहादत का, उनपर मानसिक और भावनात्मक आघात उजागर होता है। उन्होंने न केवल अपने बेटे को खो दिया, बल्कि स्मृति सिंह के जाने के बाद उनके बेटे की विरासत भी अब उनसे परायी हो गई। वर्तमान ‘नोक’ नीति, प्रशासनिक कारणों से सुदृढ़ होने के बावजूद ऐसे अभिभावक जिनके बच्चों ने देश के लिए बलिदान दिया वे आज अपना सब कुछ खो कर भी उपेक्षित महसूस करते हैं। फ़ौज की पालिसी उन्हें ढाढ़स देने के बजाए उनके दुखों में इजाफ़ा करती महसूस होती है । मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी नीति माता-पिता की क्षति की भावना को और गहरा करती है, क्योंकि वे अपने बच्चे के बलिदान की विरासत में उन्हें उपेक्षित महसूस कराती हैं।
सिंह परिवार की ये दुखभरी कहानी उनके अकेले की नहीं होकर ऐसे कई अन्य परिवारों की भी है, जो अपने ही बच्चों की शहादत की कथाओं में ख़ुद अजनबी जैसे शामिल है। हमारी फ़ौज की ‘नेक्स्ट ऑफ किन’ नीति में बदलाव के लिए बुलंद होती इन प्रभावित परिवारों की आवाज को अंजाम तक पहुँचने की तुरंत आवश्यकता है। हमारे नीति निर्धारकों को अब एक ऐसी निति बनाने की आवश्यकता है जो सैनिकों के बलिदान को सम्मानित करने के साथ साथ उनके परिजनों की आवश्यकताओं एवं भावनात्मक संबल पर केंद्रित हो।
पुनर्मूल्यांकन की मांग
‘नेक्स्ट ऑफ किन’ नीति, विशेष रूप से सैन्य संदर्भों में, अक्सर शहीद सैनिक की मृत्यु के बाद लाभ और सम्मान के प्रमुख प्राप्तकर्ता के रूप में पत्नी पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य पति या पत्नी को तत्काल सामर्थ प्रदान करना है, लेकिन इसमें अक्सर शोकसंतप्त माता-पिता को अनजाने में हाशिये पर रखा दिया जाता है। कैप्टन अंशुमान सिंह जैसे मामले नेती के कारण भावनात्मक और पारिवारिक तनावों को उजागर करते हैं। इसी कारण नीति में सुधार कर जीवनसाथी समेत माता पिता को भी शामिल करने को सुनिश्चित करने के लिए मार्मिक अपील है।
कैप्टन सिंह जैसे अनेक वीरों की शहादत को पूर्ण सम्मान देने हुए, हमें उनके शोकाकुल परिवार की गुमसुम आवाज़ों को भी महतव देना आवश्यक है। फ़ौज की नीति को सुदृढ़ करते हुए उसमें पत्नी के अलावा माता पिता को भी सम्मानजनक तौर पर समावेश करना ज़रूरी है। जिससे ऐसे अनगिनत परिवारों के बलिदान की अहमियत को भी मान्यता प्रदान होगी।
‘नेक्स्ट ऑफ किन’ नीति पर उत्पन्न विवाद यह दर्शित करता है कि हमारी फ़ौज को ऐसे भावनात्मक मामलों में अधिक सहानुभूतिपूर्ण और लचीले दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। मौजूदा नीति प्रशासनिक दक्षता के लिए जीवनसाथी को प्राथमिकता देती है, लेकिन अक्सर व्यक्तिगत परिस्थितियों को देखते हुए माता-पिता के पक्ष को ठीक से समझने में असफल रही है। सिंह परिवार की मांग स्थिर मापदंडों और निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए उनके समान ही अन्य परिवारों के लिए न्यायसंगत माँग है जिसपर हमारी फ़ौज को तुरंत विचार करना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय NOK नीतियों का तुलनात्मक विश्लेषण
भारतीय फ़ौज में, “नेक्स्ट ऑफ किन” का अर्थ एक व्यक्ति के सबसे करीबी रिश्तेदार या कानूनी प्रतिनिधियों से होता है, जिन्हें सेवा के दौरान किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के मामले में अनुग्रह भुगतान और अन्य लाभ प्राप्त होते हैं। अविवाहित होने पर माता-पिता या अभिभावकों को “नेक्स्ट ऑफ किन” के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है। परंतु सेना के नियमों के अनुसार शादी के बाद माता-पिता के स्थान जीवनसाथी का नाम शामिल किया जाता है। क़ानूनी रूप से नीति सुदृढ़ होने के साथ इसका उद्देश्य प्रक्रिया को सरल बनाना है। लेकिन नीति में भावनात्मक पहलू को नज़रअंदाज़ करने के कारण शहीदों के माता पिता का त्याग दृष्टिओझल हो जाता हैं। जिसका पुनर्मूल्यांकन होना आवश्यक प्रतीत होता है।
“नेक्स्ट ऑफ किन” नीतियों का मुख्य उद्देश्य ‘सैनिकों के परिवारों को वित्तीय और भावनात्मक समर्थन प्रदान करना’ दुनिया भर में एक समान है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) में, ‘नेक्स्ट ऑफ किन’ नीति यह सुनिश्चित करती है कि किसी सैनिक के घायल होने या मृत्यु की स्थिति में तत्काल परिवार के सदस्यों, आमतौर पर माता-पिता या पति-पत्नी को सूचित कर वित्तीय सहायता प्रदान की जाये। वित्तीय सहायता में पेंशन, भत्ते और आवास सहायता शामिल है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) में, शादी के बाद, जीवनसाथी को प्राथमिक तौर पर ‘नेक्स्ट ऑफ किन’ माना जाता है। वे ही उत्तरजीवी लाभ के हक़दार होते हैं। नीति चुनौतीपूर्ण समय के दौरान वित्तीय सहायता और भावनात्मक सहायता दोनों पर जोर देती है। ऑस्ट्रेलिया में प्रारंभ में, माता-पिता को नेक्स्ट ऑफ किन के रूप में पंजीकृत किया जाता है। हालांकि, शादी के बाद, ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल नामांकन को जीवनसाथी में बदल देता है। वैश्विक स्तर पर, ‘नोक’ नीति परिवार के निकटतम सदस्यों को प्राथमिकता देती हैं, किंतु विशिष्ट परिस्थित्यों में प्रत्येक राष्ट्र में कानूनी ढांचे और सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर हैं।
कानून और नीति सिफारिशें
विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक विस्तृत ‘नोक’ नीति जीवनसाथी और परिवार के सदस्यों के बीच विवाद का कारण बन सकती हैं। किंतु स्पष्ट दिशा-निर्देश और समीक्षा बोर्ड ऐसे संभावित विवादों को पर लगाम लगा सकते है। ऐसे संभावित विवादों के बावजूद भी उक्त नीति में मानवीय एवं भावनात्मक दृष्टिकोण शामिल करना अधिक महत्वपूर्ण हैं। इसलिए नीति निर्माताओं को समावेशी एवं लचीला रुख़ अपनाते हुए निम्न बिंदुओं को शामिल करने पर विचार करना चाहिए –
आश्रित — ‘नोक’ निर्धारण में वित्तीय निर्भरता और विवाह की अवधि जैसे कारकों पर विचार करना वर्तमान विवाद जैसे मामलों में पीड़ित परिवारों को संबल प्रदान करने में सहायक हो सकते है।
समीक्षा बोर्ड की स्थापना— व्यक्तिगत आधार पर मूल्यांकन कर भावनात्मक, समावेशी एवं निष्पक्ष निर्णय करने के लिए समीक्षा बोर्ड की स्थापना करना।
परामर्श और समर्थन सेवाएँ प्रदान करना— संपूर्ण शोकाकुल परिवार जिसमें जीवनसाथी के साथ माता पिता व अन्य परिजन को शामिल कर परामर्श के आधार पर उनके भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव को समझ कर समावेशी निर्णय किया जा सकता है ।
शहीद कैप्टेन अंशुमान सिंह के परिवार से उपजे इस विवाद का प्रशासनिक दक्षता और सहानुभूति के बीच संतुलन बनाते हुए ‘नोक’ नीति का पुनर्मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है । वर्तमान मामला ‘नोक’ नीतियों में लचीलेपन की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। शहीद सैनिकों के जीवनसाथी के साथ उनके माता-पिता को आर्थिक के साथ आवश्यक भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समर्थन दिया जाना सर्वथा उचित है। कुल मिलाकर, नोक नीतियों का उद्देश्य शहीदों का सम्मान करना और उनके बाद उनके परिवारों को सामर्थ्य प्रदान करना है।”नेक्स्ट ऑफ किन” नीतियों को विविध पारिवारिक परिस्थितियों के अनुकूल बनाना एक निरंतर चुनौती होने के बावजूद आवश्यक है जिस पर तुरंत विचार कर अमल करना चाहिए।
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